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महात्मा गांधी का जीवन परिचय पर निबंध | Essay in Hindi

Updated: 22-08-2024, 08.54 AM
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महात्मा गांधी का जीवन परिचय पर निबंध

यह लेख “महात्मा गांधी का जीवन परिचय पर विस्तृत निबंध” शीर्षक के अंतर्गत महात्मा गांधी के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गहन दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। इसमें उनके प्रारंभिक जीवन, शिक्षा, दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष, और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका पर विस्तार से चर्चा की गई है। गांधीजी के सत्य और अहिंसा पर आधारित दर्शन ने न केवल भारत में बल्कि विश्वभर में शांति और सद्भावना के लिए प्रेरणा दी है। लेख में उनके सामाजिक सुधारों, जैसे जातिवाद और छुआछूत के खिलाफ संघर्ष, और महिलाओं के अधिकारों के लिए किए गए प्रयासों का भी उल्लेख है। गांधीजी की विरासत और उनके सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं और समाज को नई दिशा प्रदान करते हैं। यह निबंध गांधीजी के जीवन और योगदान को समझने और उनसे प्रेरणा लेने का एक उत्कृष्ट माध्यम है।

महात्मा गांधी का जीवन परिचय पर विस्तृत निबंध

महात्मा गांधी, जिन्हें “बापू” और “राष्ट्रपिता” के नाम से भी जाना जाता है, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता और अहिंसा के पुजारी थे। उनका जीवन और कार्य न केवल भारतीय समाज के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। इस निबंध में हम उनके जीवन, शिक्षा, संघर्ष, दर्शन और योगदान पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। उनके पिता करमचंद गांधी पोरबंदर के दीवान थे और माता पुतलीबाई एक धार्मिक और सादगीपूर्ण महिला थीं। गांधीजी का परिवार धार्मिक और नैतिक मूल्यों में दृढ़ विश्वास रखता था, जिसका प्रभाव उनके जीवन पर गहराई से पड़ा। गांधीजी की प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर और राजकोट में हुई। वे एक औसत छात्र थे, लेकिन उनके अंदर सत्य और नैतिकता के प्रति गहरी निष्ठा थी।

13 वर्ष की आयु में उनका विवाह कस्तूरबा गांधी से हुआ। इस बाल विवाह ने उनके जीवन पर गहरा प्रभाव डाला और उन्होंने बाद में बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठाई। 1888 में, गांधीजी कानून की पढ़ाई के लिए लंदन गए। वहां उन्होंने बैरिस्टर बनने के लिए यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में दाखिला लिया। लंदन में रहते हुए, गांधीजी ने पश्चिमी सभ्यता के संपर्क में आकर अपने दृष्टिकोण का विस्तार किया, लेकिन वे भारतीय संस्कृति और मूल्यों के प्रति भी समर्पित रहे।

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दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष

गांधीजी का जीवन दक्षिण अफ्रीका में एक महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंचा। 1893 में वे एक कानूनी मामले के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका गए। वहां भारतीयों के प्रति नस्लीय भेदभाव और अन्याय को देखकर वे आक्रोशित हुए। एक घटना में, प्रथम श्रेणी का टिकट होने के बावजूद उन्हें ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया। इस अनुभव ने उन्हें भारतीयों के अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया।

दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए, गांधीजी ने सत्याग्रह की अवधारणा विकसित की, जो सत्य और अहिंसा पर आधारित थी। उन्होंने भारतीय समुदाय के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और नस्लीय भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई। 1906 में, उन्होंने ट्रांसवाल में एशियाई लोगों के खिलाफ बनाए गए नए कानूनों के विरोध में सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया। इस आंदोलन ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई और अहिंसा के सिद्धांत को मजबूती प्रदान की।

भारत में स्वतंत्रता संग्राम

1915 में गांधीजी भारत लौटे और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए। उन्होंने भारतीय समाज की समस्याओं को समझने के लिए देशभर में यात्राएं कीं। उनके नेतृत्व में कई महत्वपूर्ण आंदोलनों की शुरुआत हुई, जैसे कि असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन। इन आंदोलनों ने ब्रिटिश शासन को चुनौती दी और भारतीय जनता को स्वतंत्रता के लिए एकजुट किया।

गांधीजी का असहयोग आंदोलन 1920 में शुरू हुआ, जिसमें उन्होंने भारतीय जनता से ब्रिटिश शासन के खिलाफ असहयोग करने का आह्वान किया। उन्होंने विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करने और स्वदेशी वस्त्रों को अपनाने पर जोर दिया। इस आंदोलन ने भारतीय अर्थव्यवस्था में स्वदेशी उत्पादों के महत्व को बढ़ावा दिया।

1930 में, गांधीजी ने दांडी मार्च का नेतृत्व किया, जो नमक कानून के खिलाफ एक अहिंसात्मक विरोध था। यह मार्च 12 मार्च से 6 अप्रैल तक चला और गांधीजी ने साबरमती आश्रम से दांडी तक 240 मील की यात्रा की। इस आंदोलन ने ब्रिटिश शासन की नीतियों के खिलाफ भारतीय जनता को एकजुट किया और स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी।

1942 में, गांधीजी ने भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने ब्रिटिश शासन को भारत छोड़ने का आह्वान किया। इस आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को चरम पर पहुंचा दिया और अंततः 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिली।

गांधीजी का दर्शन

महात्मा गांधी का दर्शन सत्य और अहिंसा पर आधारित था। वे मानते थे कि सत्य और अहिंसा के माध्यम से किसी भी समस्या का समाधान संभव है। उनका विश्वास था कि नैतिकता और सत्य के मार्ग पर चलकर ही समाज में वास्तविक परिवर्तन लाया जा सकता है। गांधीजी ने अपने जीवन में इन सिद्धांतों का पालन किया और अपने अनुयायियों को भी इसी मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।

गांधीजी का आर्थिक दर्शन भी स्वदेशी के सिद्धांत पर आधारित था। वे मानते थे कि भारतीय अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्वदेशी उत्पादों का उपयोग आवश्यक है। उन्होंने खादी और ग्रामोद्योग को बढ़ावा दिया और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास पर जोर दिया।

गांधीजी का सामाजिक योगदान

गांधीजी ने सामाजिक सुधारों के लिए भी महत्वपूर्ण कार्य किए। वे जातिवाद और छुआछूत के खिलाफ थे और उन्होंने हरिजन आंदोलन की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने अछूतों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए भी आवाज उठाई और समाज में महिलाओं की स्थिति को सुधारने के लिए प्रयास किए।

गांधीजी का मानना था कि शिक्षा समाज के विकास का मूल आधार है। उन्होंने बुनियादी शिक्षा के महत्व को समझा और नई तालीम की अवधारणा प्रस्तुत की, जिसमें शिक्षा को व्यावहारिक और नैतिक मूल्यों के साथ जोड़ा गया।

गांधीजी की विरासत

महात्मा गांधी का जीवन और कार्य आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं। उनके सिद्धांत और विचार आज भी प्रासंगिक हैं और समाज को नई दिशा प्रदान करते हैं। गांधीजी के अहिंसा और सत्य के सिद्धांत ने न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में शांति और सद्भावना के लिए प्रेरणा दी है।

गांधीजी की विरासत को संजोने के लिए भारत में कई संस्थान और संगठन कार्यरत हैं। उनके जन्मदिन 2 अक्टूबर को विश्व अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो उनके सिद्धांतों की वैश्विक स्वीकार्यता को दर्शाता है।

निष्कर्ष

महात्मा गांधी का जीवन और कार्य हमें यह सिखाता है कि सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर समाज में वास्तविक परिवर्तन लाया जा सकता है। वे एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अपने जीवन को मानवता की सेवा में समर्पित कर दिया। उनका जीवन और योगदान सदैव प्रेरणा का स्रोत रहेगा। गांधीजी के विचार और सिद्धांत आज भी हमें नई दिशा प्रदान करते हैं और हमें बेहतर समाज के निर्माण के लिए प्रेरित करते हैं। उनके जीवन से हमें यह सीखने को मिलता है कि सच्चाई और अहिंसा के मार्ग पर चलकर ही हम एक समृद्ध और सशक्त समाज का निर्माण कर सकते हैं।

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