त्योहारों पर निबंध

मकर संक्रांति पर निबंध हिंदी में (Makar Sankranti Essay In Hindi)

Updated: 04-09-2024, 03.25 AM
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मकर संक्रांति पर निबंध

हमारे इस पोस्ट में आपको मकर संक्रांति पर निबंध विभिन्न शब्द सीमाओं में उपलब्ध है। यहाँ आप 100 शब्द, 300 शब्द, 500 शब्द, 1000 शब्द और 1500 शब्दों में मकर संक्रांति पर निबंध पढ़ सकते हैं। इन निबंधों में मकर संक्रांति के धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व को विस्तार से बताया गया है। इस पर्व से जुड़ी परंपराएँ, रीति-रिवाज और भारत के विभिन्न हिस्सों में इसे कैसे मनाया जाता है, यह सभी जानकारियाँ सरल भाषा में प्रस्तुत की गई हैं। यह निबंध खासतौर पर छात्रों और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवाओं के लिए उपयोगी हैं। मकर संक्रांति के महत्व को समझने के लिए यह एक उत्तम स्रोत है।

महत्वपूर्ण बिंदु: मकर संक्रांति

विषयविवरण
त्योहार का दिनमकर संक्रांति हर साल 14 जनवरी को मनाई जाती है।
धार्मिक महत्वमकर संक्रांति सूर्य देव की पूजा और पवित्र नदियों में स्नान का पर्व है। इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है और उत्तरायण की ओर अग्रसर होता है।
ज्योतिषीय महत्वसूर्य का मकर राशि में प्रवेश ज्योतिषीय रूप से शुभ माना जाता है। इस दिन से दिन लंबे और रातें छोटी होने लगती हैं।
खास परंपराएँगंगा स्नान, तिल-गुड़ का सेवन, पतंगबाजी, और दान-पुण्य की परंपरा विशेष रूप से निभाई जाती है।
विभिन्न राज्यों में नामतमिलनाडु में पोंगल, असम में बिहू, पंजाब में लोहड़ी, गुजरात और राजस्थान में पतंग उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
सामाजिक महत्वयह पर्व आपसी मेलजोल, सहयोग, और दान-पुण्य का प्रतीक है। लोग एक-दूसरे को तिल-गुड़ बांटते हैं और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देते हैं।
प्रमुख खाद्य पदार्थतिल और गुड़ से बने लड्डू, गजक, खिचड़ी और अन्य पारंपरिक मिठाइयाँ मकर संक्रांति पर प्रमुख हैं।

मकर संक्रांति पर निबंध 100 शब्द में

मकर संक्रांति भारत में हर साल 14 जनवरी को मनाया जाने वाला एक प्रमुख पर्व है। इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है, जिसे संक्रांति कहा जाता है। यह त्योहार मुख्य रूप से फसल की कटाई और सूर्य देव की उपासना के रूप में मनाया जाता है। मकर संक्रांति को अलग-अलग राज्यों में विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे पंजाब में लोहड़ी, तमिलनाडु में पोंगल और असम में बिहू। इस दिन लोग पतंग उड़ाते हैं, तिल-गुड़ के लड्डू खाते हैं और गंगा स्नान करते हैं। यह पर्व खुशी, समृद्धि और नई ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है।

मकर संक्रांति पर निबंध 300 शब्द में

मकर संक्रांति भारत का एक प्रमुख त्योहार है, जिसे हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, जिसे ज्योतिषीय दृष्टि से बहुत शुभ माना जाता है। मकर संक्रांति मुख्य रूप से सूर्य देव की उपासना और फसल कटाई के समय से जुड़ा हुआ है। यह त्योहार शीत ऋतु के अंत और दिन के बढ़ने की शुरुआत का प्रतीक है, जिससे प्राकृतिक रूप से एक नए मौसम का आगमन होता है।

मकर संक्रांति का महत्व भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग तरीकों से देखा जाता है। उत्तर भारत में इसे पतंगबाजी का पर्व भी कहा जाता है। इस दिन लोग सुबह-सुबह उठकर गंगा और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और दान-पुण्य करते हैं। तिल और गुड़ का विशेष महत्व होता है। माना जाता है कि इनसे शरीर को गर्मी मिलती है और स्वास्थ्य में सुधार होता है। इसके अलावा, ये खाद्य पदार्थ आपसी संबंधों में मिठास का प्रतीक माने जाते हैं।

पंजाब में मकर संक्रांति के एक दिन पहले लोहड़ी मनाई जाती है, जो फसल कटाई का त्योहार है। तमिलनाडु में इसे पोंगल के रूप में चार दिनों तक बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। असम में बिहू के रूप में, तो गुजरात और राजस्थान में पतंग उड़ाने की परंपरा है।

मकर संक्रांति न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है, बल्कि यह सामाजिक मेल-जोल और खुशियों का पर्व भी है। इस दिन लोग एक-दूसरे से मिलते हैं, मिठाइयाँ बांटते हैं और त्योहार का आनंद उठाते हैं। यह पर्व समृद्धि, नई ऊर्जा और खुशहाली का प्रतीक माना जाता है।

मकर संक्रांति पर निबंध 500 शब्द में

मकर संक्रांति भारत का एक प्रमुख और प्राचीन पर्व है, जिसे हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है। यह त्योहार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, जिसे हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण ज्योतिषीय घटना माना जाता है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण होना शुरू करता है, यानी सूर्य दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ने लगता है। इसे शुभ समय की शुरुआत माना जाता है और इससे दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं।

मकर संक्रांति का धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से गहरा महत्व है। धार्मिक दृष्टि से, यह त्योहार सूर्य देव की उपासना का पर्व है। इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान करके पुण्य प्राप्त करते हैं और सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं। मान्यता है कि इस दिन गंगा नदी का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था, इसलिए लोग विशेष रूप से गंगा स्नान का महत्व मानते हैं। इसके अलावा, तिल और गुड़ का दान और सेवन इस पर्व की विशेष परंपराओं में से एक है। तिल और गुड़ का सेवन इस मौसम में स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना जाता है, और इनका दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।

भारत के विभिन्न राज्यों में मकर संक्रांति को अलग-अलग नामों और तरीकों से मनाया जाता है। उत्तर भारत में इसे मुख्य रूप से पतंग उड़ाने का त्योहार माना जाता है। इस दिन सुबह से ही लोग छतों पर पतंग उड़ाते हैं और पूरा आकाश रंग-बिरंगी पतंगों से भर जाता है। पतंगबाजी के साथ-साथ तिल और गुड़ से बने व्यंजन, जैसे तिल के लड्डू और गजक, खाने का विशेष महत्व है। उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में इसे खिचड़ी पर्व भी कहा जाता है, जहाँ इस दिन खिचड़ी का विशेष भोजन तैयार किया जाता है।

पंजाब में मकर संक्रांति के एक दिन पहले ‘लोहड़ी’ का पर्व मनाया जाता है। यह फसल कटाई का त्योहार है, जिसे आग जलाकर और पारंपरिक गीत-नृत्य करके मनाया जाता है। लोहड़ी मुख्य रूप से किसानों के लिए विशेष महत्व रखती है, क्योंकि यह फसल कटाई के समय के साथ जुड़ा हुआ है। तमिलनाडु में मकर संक्रांति को ‘पोंगल’ के रूप में चार दिनों तक बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर लोग नई फसल की पूजा करते हैं और ‘पोंगल’ नामक विशेष व्यंजन बनाते हैं, जो चावल, दूध और गुड़ से तैयार किया जाता है।

असम में इसे ‘माघ बिहू’ या ‘भोगाली बिहू’ के रूप में मनाया जाता है। यह असम के लोगों के लिए फसल कटाई का एक प्रमुख त्योहार है, जिसमें लोग पारंपरिक खेल खेलते हैं और घरों में स्वादिष्ट व्यंजन बनाते हैं। गुजरात और राजस्थान में मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने की विशेष परंपरा है, जहाँ लोग सुबह से लेकर शाम तक पतंग उड़ाते हैं और इस दिन को बड़े उत्साह से मनाते हैं।

मकर संक्रांति का सामाजिक महत्व भी बहुत अधिक है। यह त्योहार मेल-जोल, आपसी संबंधों में मिठास और भाईचारे का प्रतीक है। इस दिन लोग एक-दूसरे से मिलते हैं, तिल-गुड़ और मिठाइयों का आदान-प्रदान करते हैं और अपनी खुशियाँ साझा करते हैं। इस पर्व के माध्यम से समाज में सहयोग और एकता की भावना को प्रोत्साहन मिलता है।

इस दिन को दान-पुण्य के लिए भी शुभ माना जाता है। लोग जरूरतमंदों को कपड़े, तिल, गुड़, कंबल आदि का दान करते हैं। मकर संक्रांति को कर्म का पर्व भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन किए गए अच्छे कर्मों का फल कई गुना बढ़ जाता है। यही कारण है कि लोग इस दिन विशेष रूप से दान-पुण्य करते हैं और समाज के कमजोर वर्गों की मदद करते हैं।

मकर संक्रांति का महत्व केवल भारत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि नेपाल, बांग्लादेश और अन्य दक्षिण एशियाई देशों में भी इसे मनाया जाता है। इन देशों में भी इस दिन सूर्य की पूजा और दान-पुण्य की परंपराएँ निभाई जाती हैं।

अंततः, मकर संक्रांति न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह हमारे जीवन में ऊर्जा, समृद्धि और सकारात्मकता का प्रतीक भी है। यह त्योहार हमें प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने, समाज में सहयोग और प्रेम बढ़ाने और सादगी और स्वच्छता के साथ जीवन जीने की प्रेरणा देता है। मकर संक्रांति हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का अभिन्न हिस्सा है, जिसे सदियों से हर आयु वर्ग के लोग बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाते आ रहे हैं।

मकर संक्रांति पर निबंध 1000 शब्द में

मकर संक्रांति भारत का एक प्रमुख त्योहार है, जिसे हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है। इस त्योहार का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है, और यह त्योहार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। मकर संक्रांति का ज्योतिषीय महत्व भी है, क्योंकि यह दिन सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर जाने का प्रतीक है। इस दिन से दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं, जो जीवन में प्रकाश और ऊर्जा का संकेत है। मकर संक्रांति का पर्व पूरे भारत में अलग-अलग नामों और तरीकों से मनाया जाता है, और यह समाज में आपसी मेलजोल, भाईचारे और दान-पुण्य का संदेश देता है।

मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व भी अत्यधिक है। हिंदू धर्म में सूर्य देवता को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है, और मकर संक्रांति के दिन सूर्य की विशेष पूजा की जाती है। यह माना जाता है कि इस दिन किए गए स्नान, दान और पूजा का विशेष महत्व होता है। लोग इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करते हैं, विशेष रूप से गंगा, यमुना, गोदावरी और नर्मदा में स्नान को विशेष रूप से शुभ माना जाता है। इस अवसर पर लोग तिल, गुड़, और खिचड़ी का दान करते हैं, जिसे धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है।

मकर संक्रांति का पर्व पूरे भारत में विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। उत्तर भारत में इस पर्व को ‘खिचड़ी’ कहा जाता है, क्योंकि इस दिन लोग विशेष रूप से खिचड़ी बनाकर भगवान को भोग लगाते हैं और परिवार के साथ इसका सेवन करते हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार में मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने की परंपरा है, जहाँ लोग पूरे दिन आसमान में रंग-बिरंगी पतंगें उड़ाते हैं। पंजाब और हरियाणा में इस पर्व को ‘लोहड़ी’ के रूप में एक दिन पहले मनाया जाता है, जिसमें लोग आग जलाकर उसमें तिल, मूँगफली, गुड़ आदि चढ़ाते हैं और अग्नि की परिक्रमा करते हैं।

तमिलनाडु में मकर संक्रांति को ‘पोंगल’ के रूप में मनाया जाता है। यह चार दिनों का उत्सव होता है, जिसमें नई फसल की पूजा की जाती है और पोंगल नामक विशेष व्यंजन बनाया जाता है। पोंगल मुख्य रूप से चावल, दूध और गुड़ से तैयार किया जाता है, जिसे सूर्य देवता को अर्पित किया जाता है। असम में इसे ‘भोगाली बिहू’ के नाम से मनाया जाता है, जहाँ लोग नए साल और फसल की कटाई का जश्न मनाते हैं। पश्चिम बंगाल में इसे ‘पौष संक्रांति’ कहा जाता है, और लोग इस दिन तिल और गुड़ से बने व्यंजन खाते हैं। महाराष्ट्र में इस दिन महिलाएँ तिल-गुड़ बांटती हैं और एक-दूसरे से कहती हैं, “तिल-गुड़ लो और मीठा बोलो,” जो आपसी प्रेम और सद्भाव का प्रतीक है।

मकर संक्रांति का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी अत्यधिक है। यह त्योहार समाज में आपसी मेलजोल और भाईचारे का प्रतीक है। इस दिन लोग अपने मित्रों और परिवार के साथ मिलकर खुशियाँ मनाते हैं। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, मकर संक्रांति का उत्सव फसल कटाई से जुड़ा होता है, जहाँ किसान नई फसल का जश्न मनाते हैं और भगवान को धन्यवाद देते हैं। इस पर्व पर दान का भी विशेष महत्व है। लोग जरूरतमंदों को तिल, गुड़, कपड़े और अन्य सामग्रियाँ दान करते हैं, जिसे शुभ माना जाता है। इससे समाज में समानता और सहयोग की भावना को बढ़ावा मिलता है।

मकर संक्रांति का ज्योतिषीय महत्व भी है। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह पर्व सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने और उत्तरायण होने का प्रतीक है। इसका अर्थ है कि अब दिन लंबे होने लगते हैं और ठंडक धीरे-धीरे कम होने लगती है। इस समय को ऋतु परिवर्तन का समय भी माना जाता है, जब सर्दियों का अंत और वसंत ऋतु का आगमन होता है। यह समय कृषि के लिए भी महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि किसान इस समय अपनी फसलें काटते हैं और नई फसलों की बुवाई की तैयारियाँ शुरू करते हैं। इस प्रकार, मकर संक्रांति न केवल धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह कृषि और प्राकृतिक चक्र के साथ भी जुड़ा हुआ है।

इस त्योहार की एक और विशेषता पतंगबाजी है। विशेष रूप से गुजरात, राजस्थान और उत्तर भारत में मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने की परंपरा है। लोग सुबह से ही अपने घरों की छतों पर चढ़कर पतंग उड़ाते हैं और आसमान में रंग-बिरंगी पतंगों की भरमार हो जाती है। यह एक प्रकार का सामूहिक उत्सव बन जाता है, जहाँ हर आयु वर्ग के लोग उत्साह के साथ भाग लेते हैं। पतंगबाजी का यह उत्सव जीवन में आनंद और उत्साह का प्रतीक है, जो लोगों को तनावमुक्त करता है और समाज में मेलजोल को बढ़ावा देता है।

मकर संक्रांति के दिन विशेष रूप से तिल और गुड़ से बने लड्डू, गजक और रेवड़ी का सेवन किया जाता है। तिल और गुड़ का खास महत्व है, क्योंकि सर्दियों में तिल और गुड़ शरीर को गर्मी प्रदान करते हैं और सेहत के लिए भी लाभकारी होते हैं। ये खाद्य पदार्थ केवल स्वास्थ्य के लिए ही नहीं, बल्कि आपसी संबंधों में मिठास बढ़ाने का प्रतीक भी माने जाते हैं। यही कारण है कि मकर संक्रांति पर लोग एक-दूसरे को तिल-गुड़ खिलाते हैं और आपसी प्रेम और सौहार्द को बढ़ावा देते हैं।

मकर संक्रांति केवल भारत में ही नहीं, बल्कि नेपाल, बांग्लादेश और अन्य दक्षिण एशियाई देशों में भी मनाई जाती है। नेपाल में इसे ‘माघे संक्रांति’ कहा जाता है, जहाँ लोग तिल और गुड़ का सेवन करते हैं और नदियों में स्नान करते हैं। बांग्लादेश में इसे ‘पूष संक्रांति’ के रूप में मनाया जाता है, जहाँ लोग सूर्य की पूजा करते हैं और दान-पुण्य करते हैं। इन देशों में भी मकर संक्रांति का त्योहार समाज में मेलजोल, सहयोग और भलाई के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।

अंत में, मकर संक्रांति केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा उत्सव है, जो समाज में मेलजोल, सहयोग और समृद्धि का प्रतीक है। यह त्योहार हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने, आपसी संबंधों को मजबूत करने और समाज के कमजोर वर्गों की सहायता करने का संदेश देता है। मकर संक्रांति का पर्व हमें यह सिखाता है कि जीवन में खुशियाँ केवल अपने लिए नहीं, बल्कि समाज के हर व्यक्ति के साथ साझा करके ही पूरी होती हैं। इस पर्व का महत्व सदियों से बना हुआ है और इसे हर आयु वर्ग के लोग बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाते हैं।

मकर संक्रांति पर निबंध 1500 शब्द में

भारत में मनाए जाने वाले त्यौहारों की सूची में मकर संक्रांति का विशेष स्थान है। यह त्यौहार पूरे भारत में विविध नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है, लेकिन इसका मूल महत्व एक ही है – यह सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का पर्व है। मकर संक्रांति मुख्यतः सूर्य देवता को समर्पित त्यौहार है, जो प्रकृति और कृषि से गहराई से जुड़ा हुआ है। यह त्यौहार न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसे सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

मकर संक्रांति का नाम दो मुख्य शब्दों से बना है – ‘मकर’ जो कि राशि का नाम है और ‘संक्रांति’ जिसका अर्थ है ‘प्रवेश’। इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है और इससे दिन-रात की अवधि में परिवर्तन होता है। यह समय ऋतु परिवर्तन का भी सूचक है, जब सर्दी की ठंडक धीरे-धीरे कम होने लगती है और गर्मियों की शुरुआत होती है। मकर संक्रांति के बाद दिन धीरे-धीरे बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं। इसे उत्तरायण काल की शुरुआत के रूप में भी जाना जाता है, जिसे हिन्दू धर्म में अत्यंत शुभ माना जाता है।

हिन्दू धर्म में मकर संक्रांति का विशेष धार्मिक महत्त्व है। इस दिन को पवित्र माना जाता है और विभिन्न धार्मिक कार्यों और पूजाओं के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। यह त्यौहार देवताओं के दिन अर्थात उत्तरायण की शुरुआत का प्रतीक है। ऐसा कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन पवित्र नदियों जैसे गंगा, यमुना और नर्मदा में स्नान करने से व्यक्ति के पापों का नाश होता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन विशेष रूप से गंगा स्नान का महत्त्व होता है, और हजारों श्रद्धालु इस दिन प्रयागराज और गंगा नदी के तट पर एकत्रित होते हैं।

मकर संक्रांति से जुड़ी कई धार्मिक कथाएं भी प्रचलित हैं। एक प्रमुख कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने इस दिन असुरों का संहार किया था और उनके सिरों को मंदार पर्वत पर दबाया था। इसी दिन से असुरों का अंत हुआ और धर्म की विजय हुई। मकर संक्रांति का त्यौहार इस धार्मिक मान्यता का प्रतीक है और इस दिन को बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में भी देखा जाता है।

इसके अतिरिक्त महाभारत की कथा के अनुसार भीष्म पितामह ने अपनी मृत्यु के लिए उत्तरायण काल का चयन किया था। उन्होंने अपनी मृत्यु को तब तक टाला, जब तक सूर्य उत्तरायण में नहीं आ गया, क्योंकि इस काल को मोक्ष प्राप्ति के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। इसलिए मकर संक्रांति को धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

मकर संक्रांति केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि इसका सांस्कृतिक महत्त्व भी उतना ही महत्वपूर्ण है। यह त्यौहार भारत के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न नामों और रूपों में मनाया जाता है, लेकिन इसके मूल में हर्ष और उल्लास का संदेश निहित होता है। उत्तर भारत में मकर संक्रांति को खिचड़ी के रूप में मनाया जाता है, जबकि दक्षिण भारत में इसे ‘पोंगल’ के रूप में मनाया जाता है। पश्चिम बंगाल में इसे ‘पौष संक्रांति’ कहा जाता है और महाराष्ट्र में ‘तिलगुल’ त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। हर राज्य में इस त्यौहार को मनाने का तरीका अलग हो सकता है, लेकिन सभी जगह इसे हर्षोल्लास और मिलन के पर्व के रूप में देखा जाता है।

उत्तर भारत में मकर संक्रांति विशेष रूप से खिचड़ी बनाने और दान देने का पर्व है। इस दिन घरों में विशेष प्रकार की खिचड़ी बनाई जाती है, जिसमें चावल, दाल, और सब्जियों का प्रयोग होता है। इसे ग्रहण करना शुभ माना जाता है। साथ ही, इस दिन तिल, गुड़, और दाल के पकवान भी बनाए जाते हैं। लोग आपस में तिल और गुड़ के लड्डू बांटते हैं और कहते हैं, “तिल गुड़ खाओ, मीठा बोलो।” यह त्यौहार समाज में प्रेम, भाईचारे और सामंजस्य का प्रतीक है।

इस दिन दान का भी विशेष महत्त्व होता है। लोग गरीबों और जरुरतमंदों को भोजन, कपड़े और धन का दान करते हैं। खासतौर पर तिल और गुड़ का दान करना पुण्यकारी माना जाता है। गंगा स्नान के बाद लोग दान पुण्य करते हैं और अपने पापों का प्रायश्चित करते हैं। उत्तर प्रदेश में इस त्यौहार को खिचड़ी पर्व के नाम से भी जाना जाता है और गोरखपुर में इसका विशेष महत्त्व होता है।

पश्चिम भारत में मकर संक्रांति के दिन पतंगबाजी का विशेष आयोजन होता है। गुजरात और राजस्थान में इस दिन को ‘उत्तरायण’ के रूप में मनाया जाता है और लोग सुबह से शाम तक पतंग उड़ाने का आनंद लेते हैं। इस दिन आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से भर जाता है और पूरे वातावरण में उत्साह और उमंग का माहौल होता है। पतंग उड़ाना यहां मकर संक्रांति का प्रमुख हिस्सा है, और यह समाज में एकता और सामूहिकता का संदेश भी देता है।

महाराष्ट्र में मकर संक्रांति को ‘तिलगुल’ के नाम से जाना जाता है। इस दिन तिल और गुड़ के लड्डू बनाकर बांटे जाते हैं। यह परंपरा समाज में मिठास और प्रेम के संचार का प्रतीक मानी जाती है। इस दिन विशेष रूप से विवाहित महिलाओं को साड़ी और अन्य उपहार दिए जाते हैं, जिसे ‘हळदी-कुंकू’ कहा जाता है। यह त्यौहार महिलाओं के आपसी स्नेह और एकता का प्रतीक है।

दक्षिण भारत में मकर संक्रांति को ‘पोंगल’ के नाम से मनाया जाता है। यह त्यौहार विशेष रूप से तमिलनाडु में मनाया जाता है और इसे फसल कटाई के उत्सव के रूप में देखा जाता है। पोंगल का अर्थ है “उफान” या “उबाल”, और इस दिन घरों में विशेष पकवान पोंगल बनाया जाता है, जिसमें चावल, दूध, और गुड़ का प्रयोग होता है। लोग अपने घरों को सजाते हैं, नई फसल के लिए भगवान सूर्य और पशुओं का आभार प्रकट करते हैं और पूजा अर्चना करते हैं। यह त्यौहार किसानों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह उनकी कड़ी मेहनत का उत्सव होता है।

तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में मकर संक्रांति तीन दिनों तक मनाई जाती है। पहले दिन को ‘भोगी’, दूसरे दिन ‘संक्रांति’ और तीसरे दिन ‘कनुमा’ के नाम से जाना जाता है। इस दौरान लोग अपने घरों को साफ करते हैं, पारंपरिक पकवान बनाते हैं, और रंगोली सजाते हैं। यह त्यौहार किसानों और पशुपालन से जुड़े लोगों के लिए भी खास होता है।

पूर्वी भारत में विशेष रूप से पश्चिम बंगाल और बिहार में मकर संक्रांति का महत्त्व अत्यधिक है। इसे ‘पौष संक्रांति’ कहा जाता है और इस दिन तिल, गुड़, और चावल से बने पकवानों का विशेष महत्त्व होता है। पश्चिम बंगाल में गंगा सागर मेले का आयोजन भी इसी दिन होता है, जहां लाखों श्रद्धालु गंगा और समुद्र के संगम पर स्नान करते हैं। माना जाता है कि इस दिन गंगा नदी भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम तक पहुंची थीं, जिससे उनके पूर्वजों का उद्धार हुआ था।

बिहार और झारखंड में इस दिन लोग चूड़ा-दही, तिलकुट, और लड्डू का सेवन करते हैं। साथ ही यहां भी दान पुण्य का विशेष महत्त्व है। लोग अपने घरों से तिल, गुड़, और चावल के बने पकवान बांटते हैं और त्यौहार का आनंद लेते हैं।

मकर संक्रांति का महत्त्व केवल धार्मिक और सांस्कृतिक नहीं है, बल्कि यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह वह समय होता है जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है और उत्तरायण का आरंभ होता है। उत्तरायण काल को अत्यंत शुभ माना जाता है और यह समय कृषि के लिए भी विशेष होता है। इस समय धूप का प्रभाव बढ़ता है और फसलों को अधिक प्रकाश और गर्मी मिलती है, जिससे उनकी वृद्धि में सहायता होती है। मकर संक्रांति के समय दिन और रात की अवधि में बदलाव होता है और मौसम में भी परिवर्तन आता है। वैज्ञानिक दृष्टि से यह समय नई ऊर्जा और सजीवता का प्रतीक है।

मकर संक्रांति एक ऐसा पर्व है, जो धार्मिक, सांस्कृतिक, और सामाजिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह त्यौहार न केवल

प्रकृति और कृषि से जुड़ा हुआ है, बल्कि समाज में प्रेम, भाईचारा और सामूहिकता का भी प्रतीक है। चाहे वह उत्तर भारत की खिचड़ी हो, पश्चिम भारत की पतंगबाजी हो, या दक्षिण भारत का पोंगल – मकर संक्रांति पूरे देश में अलग-अलग तरीकों से मनाई जाती है, लेकिन इसका संदेश एक ही है – नयी शुरुआत, नयी ऊर्जा और नयी उमंग। यह त्यौहार हमें प्रकृति के साथ जुड़ने, अपनी संस्कृति का सम्मान करने और समाज में एकता और प्रेम का संदेश देने की प्रेरणा देता है।

FAQs: मकर संक्रांति

मकर संक्रांति कब मनाई जाती है?

मकर संक्रांति हर साल 14 जनवरी को मनाई जाती है।

मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व क्या है?

मकर संक्रांति सूर्य देव की पूजा और पवित्र नदियों में स्नान का पर्व है। इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है और उत्तरायण की ओर बढ़ता है, जिसे ज्योतिषीय दृष्टि से शुभ माना जाता है।

मकर संक्रांति पर कौन-कौन सी खास परंपराएँ निभाई जाती हैं?

मकर संक्रांति पर गंगा स्नान, तिल-गुड़ का सेवन, पतंगबाजी, और दान-पुण्य करने की परंपराएँ निभाई जाती हैं।

मकर संक्रांति को भारत के विभिन्न राज्यों में किस नाम से जाना जाता है?

मकर संक्रांति को तमिलनाडु में ‘पोंगल’, असम में ‘बिहू’, पंजाब में ‘लोहड़ी’, और गुजरात और राजस्थान में पतंग उत्सव के रूप में मनाया जाता है।

मकर संक्रांति पर कौन-कौन से प्रमुख खाद्य पदार्थ खाए जाते हैं?

मकर संक्रांति पर तिल-गुड़ से बने लड्डू, गजक, और खिचड़ी जैसे पारंपरिक खाद्य पदार्थ खाए जाते हैं।

मकर संक्रांति का सामाजिक महत्व क्या है?

मकर संक्रांति मेलजोल, सहयोग, और दान-पुण्य का प्रतीक है। इस दिन लोग एक-दूसरे को तिल-गुड़ बांटते हैं और आपसी प्रेम और सौहार्द को बढ़ावा देते हैं।

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